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करजो लियो पड़ोस सूँ, बठक वांही ठोड़।
देन सक्यो तो बगत पं, नित उठ माथा फोड़।179
कटु बोल्या सूँ होत है, पीड़ित को दुःख दूण।
नीं भरकाणो चालतां, दाझया ऊपर लूण।180
करड़ो रहवे नीं झूकै, सिल रा खम्भ समान।
ले जासी वीं ने नरक, वींरो ऊ अभिमान।181
करजे मत अभिमान थूँ, म्हें कीदो यो काम।
थूँ तो एक निमित है, करबा वालो  राम।182
कमसल गुण मानै नही, तरुत बतबै तान।
असली तो भूले नहीं, जीवन भर अहसान।183
कड़वी तो ही केवसी, जो हित चाण्यो होय।
खोर न काढै ताव नै, काढै नीस गिलोय।184
करलै करणो होय जो, कह दूँ देखी बात।
पवन परोग्यो रहगियो, कुवो हाथ रो हाथ।185
करज चुकाणो होय  ोत, याद राख दो बात।
खरचो करण रीत सूं, श्रम करओ दिनराथ।186
करै वेवता बैल की, सगली सार सम्भाल।
वृद्ध हुयाँ देवै कुणी, खुली तेल की नाल।187
कंई इच्छा भगवान की, नर ने पड़े न तोल।
बाजा रूकग्या ब्याव का, बजग्यो मातम ढोल।188
कह-कह थाक्या संत पण, टाँची लगी न टोल।
राम भजै नीं नत करै, नवरी लाफा लोल।189
कठिन काम कर दे सुलभ, धन सम्पत को जोर।
हो जावे कानून को, अर्थ और को और।190
कहलावे थां सूं कदी, कोई ओछी बात।
नीं कहणी नट नट जावणओ, दऊ जोड़कर हाथ।191
कर ली दीरे बणिक थे, खोटा सूँ व्यवाहर।
जो देवे सो लेय ले, नीं लड़बा में सार।192
करउ अनादर सन्त को, भली सु आदर देउ।
बुरो न मानत संत रज, नहीं रंच हरखेउ।193
करी भलायां मोखली, घणा जणां रे साथ।
काढ़ बुरायाँ आपणी, सबसूँ मोती बात।194
कंई भाँतरा देश में, संता रा पहराव।
कंई काम है वेश सूं, गुण लेबा ने जाव।195
कठिन काम कम बोलबो, बोत बड़ा आसान।
चुप रहणो मुश्किल घणओ, सोरो रंच न मान।196
कहदे कूका बार जा, बापू भीतर नांह।
अरे बापू थूं बाल ने, झूँठ सिखावे कांह।197
कह लीन्हो थें और सूँ, जद वादो इकरार।
तो निज माथे जाण जे, पूरो ऋण को भार।198
कर कर कोल करार, पलपल में जायें बदल।
बीं जन सूँ व्यवहार, मत करजे खजे अकल।199
करतो रेवे पुरुष जो, पुरुषारथ दिनराथ।
नीं छोड़े वींरो कदी, भाग्य लक्ष्मी साथ।200
करो मोखलो यज्ञ अर, करो बोत गोदान।
पेड़ उगा मोटो करो, सगला पुण्य समान।201
कम खावे बोले अलप, नींद अलप ही लेय।
सोही जन हरि भझन रो, पीवत अमरत पेय।201
कपड़ा या पोशाक में, किचित बडपण नांह।
बड़पण मोतीलाल है, मनखपणा है मांह।203
कंजर डाकू चोर सूँ, मूँ रज डरपूँ नांह।
डरर्पूं मुख में राम अर, खंजर बगला माँह।204
करतो रेणो रातदिन, काम भलो चुपचाप।
नहीं करवाणो आपणो, विग्यापन सूँ नाप।205
कम पूँजी आमद नहीं, ऋण ले खर्च करै।
दे न सकै देण्या लड़ै, घुलघुल बेग मरै।206
कर ले अपणो और ने, अण अपणा ने और।
भली देखा लो बोल कर, वाणी मधुर कठोर।207
कढै एक दूजो खरे, ज्यूँ तरुवर में पात।
मरण जनम री जगत में, यारी याही बात।208
काठौ अपणो तो करै, अर औराँ सूँ लेय।
वीं नर न मन सूँ बता, कुण जन आदर देय।209
कार माँहि रहणो सदा, कार तज्याँ दुःख पाय।
सीता लाँधी कार सों, पढ रामायण माय।210
काजी की कुतिया मरी, दाग्या हुजाय हजार।
काजी जी ने तोकण्याँ, मुश्किल मिलिया चार।211
काढ बारणे काठड़ी, तिरिया चूल्हो बाल।
नेछो रख थूं भेजसी, हरि आटो घी दाल।212
काहे को मन सगूला, करै और की आस।
बिन माँग्या हरि देवसी, गाढ़ो राख बिसास।213
कां माँगे धन जाङर थूं, लाम्बो हाथ पसार।
गुण होसी तो देवसी, घर बैठ्या ही आङर।214
काम करे कुण सोवता, सदा बड़ाँ का पूत।
चोट खूँङर नारेल दै, गुली स्वाद अद्भूत।215
काट दिया सब रूँखड़ा, बन का सेंपट पाट।
कां झौंकै बरसात की, जदे जोवड़ा बाट।216
काम कर्यो नी  गांव में, व्यर्थ मचायो शोर।
आज गाँव का भाग रया, जन शहराँ की ओर।217
काम सार पर को भली, पहली टकल्या लेङर।
पण आछयो नी सारबो, कड़कोल्या की देङर।218
काम हुवै जी रो जस्यो, या उस्यो ही पाय।
कैंची रह नीचे पड़ी, सुई पाग रै माँय।219
काम करै पूरो नहीं, अध बीच देवै छोड़।
तो जाणों वी मनख में, घणी निकामी खोड़।220
काम कमाई नीं करै, झूठ कपट कर खाय।
वीं माहीं आछी जदै, अकल कठी सूं आय।221
काम कर्यां चंगो रहै, पड़्या क्षीण ह्वै अङ्ग।
पड़िया रहण्याँ लोह पै, चढे देख लो जङ्ग।222
काम करो नी रंच भर, रूँध रखी का ठौड़।
लोभी भूखा नाम का, मर्या माँचो छोड़।223
काम सरै नीं बात सूं, सरै न करियाँ रीस।
काम सरै थें दो जदी, बिन रसीदाँ फीस।224
कान देलै डूजणाँ, मूंडो करलै बन्द।
सत पुरुषाँ री सीख या, फेर देख आननंद।225
काम के धन जोड़ लै, भींन झुका ले लाल।
पाँती साँटै ना लड़ै आछ्या सुत री चाल।226
काम पड़्यो छेटी भग्यो, सगो बहानी लेङर।
भूल करी भगवान थें, बाँकै मूंछयौ देङर।227
काम कर्या वर में लगे, जद जीमण री पाँत।
झगड़ालू लड़बा लगे, भेरूवाहन भाँत।228
काट लेवणा दिन भली, चणा चाब जल पीङर।
पाँव पकड़ झरा मार कर, नहीं खावण खीर।229
काढ्यो काला नाग नै, लामूं बलतो देख।
बोल्यो ऊ संकेत सूं, काटूं अबै कठैक।230
कागो कावै जात संग, नहीं एकलो खाय।
गंडक खावै एकलो, दूजां पे गुर्राय।231
काम कठिन निर्माण को, सरड़ावो आसान।
मनखपणो मत खोवजे, सदा राखजे मान।232
काम आज को आज कर, मती काल पै छोड़।
आलस ने त्यागो परो, आलस मोटी खोड़।233
काम पड़ै जद पाड़तां, हेलो हिलै न मित्र।
्‌स्या मीत सूँ तो लगै, भला भींत रो चित्र।234
कायर की पहचान या, साँची दऊँ बताय।
लुच्चां कै कर जोड़ दै, आच्छयाँ पै गुर्राय।235
काम बड़ो थूँ तुच्छ पण, योग देवणो जोग।
कँई सागर पुल बाँधता, ठालो दियो रै योग।236
काम करयाँ शुभ आपसो, हरि सूँ छांने नांह।
निजमुख सूँ कहतो फिरै, कां लोगां रे माह।237
काठोपण जीं सूँ कँई, तुरतां जावे रीझ।
बातचीत की होय तो, वक्ता मांहि तमीज।238
काम भलो थांसू बण्यो, मती मचावे कूक।
नहीं राखणी चित्त मे, ं जस कीरत री झूक।239
काम बणो या मत बणो, नहीं आपणे हाथ।
कोशिश करणी आपणे, तनमन सूं दिनरात।240
काम बुरा कीदा नहीं, भला न कीदा काम।
अतरा सारे मूँ लिखूँ, भला मनख में नाम।241
काम करै नी अर लड़ै, भीतर चलै दुपांत।
तो भरिया परिवार में, मेल निर्भ किण मांत।242
काचो हाँडो जोजरो, वीं हाँडा रे मांह।
नीं टिकसी वीं में कदो, बाणी भरणो नाँह।243
काम बड़ो पण कां डरै, मोती हिम्मत राख।
जूझ पड्याँ सूं अवस ही, साझी मिलसी लाख।244
कांई मतलब जात सूँ, देखो मनखाचार।
अस्यो बास मिल जाय तो, बेशक बसियो जाङर।245
कां होवे नत रोज ही, ईं घर माथा फोड़।
देख्यो  ाबप दहेज ने, और न धेकी जोड़।246
काट रियो काँ रूखड़ा, थूँ जंगल का जाङर।
कां निज पाँवा ऊपरै, रियो कुलाढो मार।247
काम जस्यो फल भी बस्यो, मिलता लगै न जेज।
शख हो तो वींने तरुत, लिखदूँ दस्तावेज।248
कां बतलावे नीच ने, बिना काम ही जरा।
सूली ने ऊँली समझ, करसी कटु व्यवहार।249
काम पड़्यो जद ही पड़ी, वीं निन्तर की जाण।
नत गंटकाता बाग में, संग ठंडायाँ छाण।250
काम हाल करणो घणो, बाकी जगरं मोह।
अणी बात री काल ने, कोई चिन्ता नाँह।251
काम करो आछ्या सदा, फल री खो न चाह।
कृष्ण बतायो बांच लो, गीताजी रे माँह।252
किस्मत भली न होय तो, श्रुद्र स्वार्थ रे हेत।
समझू भी उजड़ाय दे, हरिया-भरिया खेत।253
कियाँ करै मन सूं करै, करै न सुण सौ दाण।
पूतसपूत कपूत की, क्रम सूं या पहचाण।254
कीने दीदा लाभ है, कीने दीदा हाग।
समझदार राखौ सदा, मत देता ओसाण।255
कीदो नी सतसंग जो आकर भण्यो न एक।
हाण सहे पण नीं तजै, पक्ड्याँ पाछैं टेक।256
कुच कठोर ढीला पड़ै, धनी होय निरधन्न।
सब दिन रहे नीं एक-सा, गरबै मत रै मन्न।257
कुण मेल्यो रे राज का, पद में अतरो दोष।
नीं रहबै पाया पछै, पद पाण्या नैं होश।258
कुपित होर विधि हंस पर, सरवर छुडवा देय।
पपय पाणी अलगाव रे, गुण तो छीन न लेय।259
कुण होसी प्रतिकुल अर, कुण होसी अनुकूल।
सेवक या सोचै नहीं, चाल लेर उसूल।260
कुण जाणे कीदो कँई, कस्या जनम में पाप।
मरग्या मोतीलाल का, बालपणै माँ-बाप।261
कुल देखो, देखो अकल, वय बल देखो आप।
धन-सम्पत को देखबो, ब्याह नहीं सन्ताप।262
कुरबानी कह एक तो, इक कहवै बलिदान।
छोट-मोट याँ में कुणा, करले यो अनुमान।263
कूं कर निपजे देश रा, इण खेताँ में साख।
कर रयो है करसाण तक, गोबर धन री राख।264
कूदै मत रै मान जा, चाल बड़ाँ री चाल।
कूदै सो पाछो पड़ै, देख हिरण रो हाल।265
कूं जड़ा सूं काँई लड़ै, अरै जोहरी होङर।
थारा मोती बिखरसी, वाँ रा बेंगण बोर।266
कूंकर होग्यो एकदम, धन-सम्पत रो ठाठ।
सेठ साहब की हाट में, दोयँ तराँ का बाट।267
कूको सीधी बात ने, ऊँधी लेवे काँह।
कूका रो काँई दोष थे, भणवा भेज्यो नाँह।268
कृपण सराबा जोग थूं, लियो अकल सूं काम।
बाँझ गाय दै विप्र नै, करयो काल में नाम।269
केण मान मत बाप की, घर दहेज कै लात।
नीं मानी प्रह्लाद भी, असुर बाप की बात।270
कै दिन रहसी श्राद्ध में, काग मती पग छोड़।
फेर वणीं ही दौड़ पै, जाणओ पड़सी दौड़।271
कोई सूं भी भूलकर, करणो नहीं मजाक।
मूरखा बाजो आप अर, राड़ हुवै अखनाक।272
कोई कैवै स्वारथी, कोई कैवे चोर।
सेवक थूं रीजे सदा, मूक बधिर ज्यूं होर।273
कोस लई जद पागड़ी, लग्यो तोड़बा बोर।
पकड़ भचेड़ी टोल की, कर्यो बोरड़ी ढेर।274
कौरव पाण्डव शत्रु पण, कियो कँई सो बाँच।
घर में दो पण बारणै, सदा एक सौ पाँच।275
क्रोध घणो तन-मन जलै, पर की बढ़ती देख।
तो जाणो विधि भाल में, भलो न माँडयो लेख।276
क्रोध सरीखी बात सुण, जदी क्रोध नीं आय।
अस्यो शान्त रहण्यो मनख, साँचो वीर कहाय।277
खाय लियो रीतो हुयो, पियो दियो सो आप।
काम सिखा बेकार ने, पियो कमा ले धाप।278
खाखी सूं लवेसी कँई, गुत्थम-गुत्था होङर।
डील भरेगो मूढ़ थूँ, राखोड़ा सूँ और।279
खावें नी खचें नहीं, ध रा भर्या भंडार।
ऊँ काई धन रो घणी, कोरो चोकीदार।280
खीर खीलाई हाथ सूँ, राँध हथेली बीच।
ऊंगली चाबी दाँत सूं, अन्त नीच तो नीच।281
खुद कालो पण गाकलो, कोयल नै यूं केय।
थूँ काली बहु सुगली, सब पंछयाँ में हेय।282
खूंटा की यूँ नोक जो, तीखी होती नाँह।
सुण रै तीखा बोलणयां, ठुक ऊ गड़तो काँहा।283
खूब खुबाया रात-दिन, दाडम दाख अंगूर।
कसर पड़ी टुक चाब ली, ऊंगली शुक बेसूर।284
खूभ भण्यो जीं सूँ कंई, सूझ पड़ी नी गेल।
अनपढ़ ने भी पूछ मग, अकल आंतरे मेल।285
खेल बढ़ावे मैल तो, खेलो खेल जरूर।
खेल बढ़ावे मैल तो, रो खेलाँ सूँ दूर।286
कोटा पहँ बैठे मती, खोटा सूं रह दूर।
नीतर पड़सी टाट पै, खाल्या बिन  कसूर।287
खोड़ां मोतीलाल थूँ, पर की देखै काँह।
दोष खोज गण आपणा, कतरा थाँरे माहं।288
गढ़ जतकरा संसार में, वां सबरो शिर मोड़।
शंकर का कैलास ज्यूँ, पावन गढ चित्तौड़।289
गद्धा सूं रो आतरे, छेड़ करो मत कोय।
लात जमावै एक ऊ, तन पै उधढ़ै दोय।290
गंड़क धोखो नीं दियो, जीं घर खादो लुण।
घमी सराबा जोग है, गंड़क थारी जूण।291
गंडक था में गुण घणां, अवगुण मोटो एक।
भसै आपणी जात नै, रोटी खाता देख।292
गंडक तो भसतो रूकै, रोटी को टुक खार।
नीच करै खाया पछे, बेरहमी सूं वार।293
गांधी थें कीदी गजब, बिना तोप तरवार।
राजा कोस निज देश की, थरप दई सरकार।294
गाढो मोटो खुरदरो, कपड़ो स्याह सुरंग।
मत देखो गुण देखलो, कपड़ो ज्यारै अङ्ग।295
गांधी के मन भावतां, कर न सके थूँ काम।
काँ लेवे हर बात में, जद गाँधी रो नाम।296
गाल खूँर गेले लग्या, गाल मिलै दो चार।
जूझ पड्याँ खूँणी पड़ै, खलकी पछै हजार।297
गाल्या सूं लागै नहीं, काढ गालियाँ धाप।
मारै नित ही डाकियो, चित्त ऊपरै छाप।298
गाथा घणीं पुराण में, म्हूँ कूँ म्हारी बात।
जद-जद कीदो याद म्हें, रक्षा कीदो नाथ।299
गाल बकै लातां धरै, हाणीं करै अनन्त।
पण वीरो भी रात-दिन, हितरी सोचै संत।300
गाल्यां काढ़ी बै घणी, वै जन हरख सुणी।
म्हूँ पूछुँ यां दोय में, सांचो मरद कुणी।301
गाल सुणर गेलै लगै, रती न बोले बात।
बड़ा मनख पाछी धरै, नीं गदहा के लात।302
गाँव बलाई जद करै, बात नशा रे साथ।
अधिकार्यां को अकड़वो, नीं अचरज बात।303
गांजा भांग अफीम, मद मांस तम्बाकू चाय।
यां नै तज खा साग पय, रोग न नेहड़ो आय।304
गादी अर तकिया हटया, रेह गयो कोरो टाट।
मत झगड़ै ले लौ उरा, सौ का दै तो साठ।305
गांठ जदे पड़ जाय तो, द्रोय जणा रे बीच।
खींच-खींच कर गांठ ने, घुला रेत है नीच।306
गुरुवर पीवै मदरसे, एक-दोय सिगरेट।
कांनी फूँके छोकरा, जद पुरा पेकेट।307
गुरुजन सूँ करणो नहीं, झगड़ो बैर विवाद।
हाथ जोड़कर लेवणों, सदा सु-आशिरवाद।308
गुमी पावली नीं मिली, खूब करी म्हें खोज।
रे परीगी, रह गयो, टिकट बिना वीं रोज।309
गुरु कीदो अग्यानवश, अग्यानी मैं जार।
खुद की खासी गुलगच्चा, ऊकँई करसी पार।310
गुण गावै हरि को सदा, खावै रोटी-दाल।
ईं मुख सूँ थूँ बावला, मती काढ रै गाल।311
गुणी और गुणहीन की, करै गुणी ही जाँच।
जहोरी छन में छाँट दे, यो हीरो यो कांच।312
गुरु सोचै कीदा मिनट, गुण घंटारा साठ।
छोरा नालै साल में, बस घण्टी री बाट।313
गुण अनेक पण आपरी, बोली में न मिठास।
जीं सूँ झिझकै आपरै, मनख बैठता पास।314
गुमी पावली नी मिली, करी मोखली खोज।
कृपण अन्न लादो नहीं, सुबह शाम दो रोज।315
गुण अ ेक पण आपकी, सोबत घणी खराब।
सोबत कोटी एक सो, सगला गुण दे दाब।316
गुण भरिया हर मनख में, गुण बिन कोई नांह।
कोई में गुण अधिक तो, कम है कोई मांह।317
गुण ने देखे लोग सब, रङ्ग ने देखे कुण।
गुणसूँ प्रिय लागो कस्या, घा कालो जामुन।318
गेलै-गेलै चालतां, जो कोई दे दोष।
कह देणो इक बार पण, करणो कदी न रोष।319
गोरा ग्या पण आज भी, शिक्षा वोरी वोय।
सगला चाहै नौकरी, धन्धो करै न कोय।320
गोपालन तो भूलरयो, रियो गंडकड़ा पाल।
भली गंड़कड़ा पाल पण, गो आड़ी भी नाल।321
ग्यारस करण्या भगतरा, कस्या विचत्तर ठाठ।
अन्न छोड़ मृदु माल सूँ, भरै पेट ने डाट।322
ग्यान और धन दोय रो, श्रेष्ठ होय उपयोग।
दोन्यूँ अपणी ठोर पै, आदर पाबा जोग।323
प्रास एक ले नी सक्यो, प्राण करयो प्रस्थान।
धरियो रहग्यो सामने, पातल में पकवान।324
घर में तो माँ-बाप री, सेवा करै न बंड।
बारै औरां की करै, सो कोरो पाखंड।325
घड़ी जगावै बगत पै, टंटन-टंटन बोल।
सूतो मत रह आलसी, सम्यो बोत अनमोल।326
घमओ भण्यो पण सीख पै, अमल करै थूँ नाँह।
तो जद भण-भण रात-दिन, आंख्या फोड़ी कांह।327
घड़ी-घड़ी रे मांयने, तकै घड़ी री ओर।
तो जाणी  ऊ आलसी, असल काम रो चोर।328
घमो कीमती है सम्यो, समझ सम्यो रो मोल।
हाथ न आवे ग्यां पछे, भली थैलियाँ खोल।329
घास बिना तरसै सदा, बूढो बैल पड़ेल।
छोयो खाबै देख लो, घाणी बहतो बैल।330
धिरत घालतो जो सगो, ऊ दिन बिगड़यो देख।
फेंक दिया पण नीं दियो, सड्यो मतीरो एक।331
घुस ग्यो कस्यो समाज में, आज भयंकर रोग।
सही बोलण्या मनख री, हँसी उड़ावे लोग।332
घूँद डगै मत बैठ जा, सभा मांहि चुपचाप।
गुण होसी तो केवसी, उरा पधारो आप।333
घूँद गार घड़ आव घर, केलू कर्यो कुम्हार।
दुख देख्यो सो देखलो, चढ्यो मथारै जार।334
घोडो  ाच्ची नसल को, दुबलो-पतलो हयो।
होड करै वीं की कँई, खच्चर दर्जन होय।335
चढ़ आयो अरि देश पै, झट पुगो कुल भाण।
मार भगाओ खोलज्यो, कांकण पाछा आण।336
चरित बिना चुप रेवणो, नहीं मचाणो शोर।
जाजम कर दै सूगली, भरी बुहारी और।337
चरितवान बोले न पण, पसरें यां न सुगन्ध।
लपटां देवें अतर ज्यूँ, मंजूषा रो बन्द।338
चतुर छुवै अवगुण नहीं, गुण ही लेवे जाङर।
रेत छोड़ चींटी भखें, ज्यूँ तल पड्यो कसार।339
चलनी थूँ बोले मती, छेद सूई के एक।
थारै कतरा छेगला, तूँ थारा ही देख।340
चरितवान की एक या, मोतीलाल पिछाण।
भूल हुई तो मान ले, तुरतां वाही दाण।341
चाम न कीदो चींगटो, धाप न खादो गोल।
मौसर कीदो बाप को, पीपा दीदा ढोल।342
चातुर करले अकल को, शकल देख अन्दाज।
कामदार ज्यूँ कूं त लै, खड़ी फसल को नाज।343
चाटुकार सूं राखणी, रती न हित की आस।
हाथ जोड़ करणों विदा, नहीं बिठाणों पास।244
चाल सकें नीं चतुर को, कम पूँजी व्यापार।
लेङर उधारी बगत पै, घर बैठै दें जाङर।245
चाल रही है या कसी, भली भणाई आज।
पाव बोज लै चालतां, सुत नै आवै लाज।246
चार टकां की चीज नै, का मांहि ली आप।
चोर नहीं पण आप हो, वां चोरां का बाप।347
चार टकां सांटै कदी, दुर्जन मांडै टेक।
राड़ कदी नी झेलणी, टकल्या देणां फैंक।248
चावे तो सब कोस घर, छुड़वादे घर दोष
पण भूपत विदवान रो, गुण तो सकै न कोस।249
चाल चलै थूँ और अर, बात करै थूँ ओर।
मनख बात सुणसी नहीं, मत मचावै शोर।250
चाहे धरदो सामने, अणगणती रा नोट।
अकलमन्द बेचै नहीं, बेटी बेटा बोट।251

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